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नमस्कार मित्रों, मैं एक बार फिर संवाद बेला में आप सभी राष्ट्रभक्तों का अभिनंदन करता हूँ |
मित्रों क्या कभी आपने सोचा हैं कि ये ं “ राष्ट्र ” शब्द के क्या मायने हैं ? आखिर क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए ? आखिर क्यों यह शब्द मात्र स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही दर्शित होता हैं ?
आइए, कुछ विचार विमर्श इस शब्द की सार्थकता हेतु किया जाए |
मित्रों आज हमारें समाज का जो प्रतिबिंब उभर रहा हैं, उसमें राजनीतिक दलों की सत्ता मोह भावना, निजी स्वार्थ, कथित छद्म महिला सशक्तिकरण के आधार Social plateform, Instagram, Tik tok आदि पर बूहड़पन की अश्लील और अनैतिक प्रतिस्पर्धा, और आधुनिक दिखने की दौड़ जैसे घटक विषयों का बड़ा नकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है ं| और इसका परिणाम यह हुआ है ं कि हम कहीं न कहीं अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्वहन करना भूल गए हैं |
मित्रों किसी समाजिक या राष्ट्रीय विषय पर हम तब बोलते है जब वो हमारे निजी लाभ के आड़े आने लगता है | अन्यथा हम उन विषयों पर धृतराष्ट्र की तरह अन्धे और मौन हो जाते हैं | ऐसी परिस्थितियों ही हमारी , राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को निर्धारित करती है ं|
हाल ही में कुछ ऐसे विषय जैसें जनसंख्या नियंत्रण, अफगानिस्तान में आतंक, माफियाओं पर नियंत्रण, सख्त कानून द्वारा समाजिक स्थिरता, किसानों और जवानों के हित में किए गए फैसले, बहुविवाह, विवाह विच्छेद, गैर धार्मिक स्थलों पर कब्जा, सरकारी जमीन पर कब्जा करने की दुर्भावना से रोज-रोज मजार आदि निर्माण, CAA, महिला सुरक्षा को लेकर राजनीतिक दलों का अवसरवादी धार्मिक भेदभाव आदि , ऐसे अनेक विषय सामने आए हैं | ऐसा नहीं है कि जनसमूह ने इन विषयों पर अपनी विचारधारा नहीं रखी, अपितु पूर्व की अपेक्षा समाजिक सक्रियता में वृद्धि आई है ं| परन्तु ये भी सत्य है कि इस देश का एक बड़ा वर्ग इन मुद्दो पर उदासीन, निष्क्रिय या राष्ट्र विरोधी रूख प्रस्तुत करते हुए दर्शित होता है ं, जो निश्चित ही इस देश के संवैधानिक आधार और राष्ट्र हित में नकारात्मक दुखद संकेत हैं | ऐसा वर्ग जनसमूह ऐसे विषयों की गंभीरता और उनकी तत्कालिक उपयोगिता को #लैंगिक, #धार्मिक, #क्षेत्रीय, #जातिगत, #राजनीतिक वर्ण / रंगों से रंजित कर प्रस्तुत करते हैं | वे भूल जाते हैं कि राष्ट्र की सुरक्षा, शान्ति, स्थिरता, सवोर्परि होनी चाहिए, न कि हमारे निजी लाभ |
ऐसे विषय, इतिहास के कटुअनुभव आधारित, और समाजिक कुरीतियों के उन्मूलन हेतु नितांत आवश्यक हैं | हमें वर्तमान और भावी पीढ़ी में आधुनिक बनने के साथ-साथ, राष्ट्र के प्रति जवाबदेही की भावना को विकसित करना होगा | और राष्ट्र विरोधी राजनीति, या धार्मिक कट्टरता लिए मजहबी ठेकेदारो को आत्म आंकलन कर राष्ट्र हित में सार्थक सोच के मील के पत्थर साबित करने चाहिए | और समाज, सरकार के प्रतिनिधियों को भी ये सुनिश्चित करना चाहिए कि राष्ट्र विरोधी वर्ग को निष्पक्ष रहते हुए, सख्त कानूनन कार्यवाही द्वारा तत्काल प्रभाव से दंडित करना चाहिए | क्योंकि ....
“जो राष्ट्र के नाम का नहीं वो राष्ट्र के काम का नहीं ”
Regarding...साकेत कुमार
“भारत”