Saturday, November 20, 2021

#White discharge ?/श्वेत प्रदर by Dr. Saket Kumar/mob.08439017594#Saharanpur#BHARAT/#साकेत गर्ग/#Saket Garg

                                                   नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को नया आयाम देने के उद्देश्य से एक नए स्वास्थ्य विषय “ श्वेत प्रदर ” की पुनरावृत्ति क्यों ? , को लेकर उपस्थित होते हुए , आप सभी का अभिनंदन करता हूॅं । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में श्वेत प्रदर को Leaucorhea तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से श्वेत प्रदर , एक प्रकार का योनिव्यापद् जन्य उपद्रव एवं मेरे निजी दृष्टिकोण से “ रस धातु का क्षरण ” करने वाला पृथक् रोग है।

DIAL BHARAT .. 08439017594

                                   मित्रों आज का स्वास्थ्य विषय भले ही पूर्ण रूप से नारी शक्ति को समर्पित हो किन्तु परोक्ष रूप से सम्पूर्ण परिवार को प्रभावित करने वाला रोग और स्वास्थ्य विषय हैं। आइए जानने की कोशिश करते हैं - श्वेत प्रदर हैं क्या ? , ये सामान्य कब हैं ? , और कारण सहित इसके क्या लक्षण हैं ? , और कब इसे रोग की श्रेणी में रखना चाहिए ?

                                मित्रों स्त्री में प्रजनन तंत्र संबंधित जननांग अंग योनि से समय-2 पर , स्त्री हार्मोन एस्ट्रोजन / Oestrogen की सक्रियता के कारण , मैथुन उत्सुकता के समय (Sexual excitement) , मैथुन करने के दौरान (During sex) , मासिक धर्म से पूर्व (Before menses) , स्त्री की Ovary से अण्ड् विसर्जन के समय   (At ovulation) , और अन्य भी अनेक विशेष परिस्थितियों में सामान्य , उपद्रवरहित स्राव निकलता रहता हैं जो योनि की स्वस्थ्ता , और अम्लीयता (ph control) को संतुलित करने हेतु नितांत आवश्यक होता हैं ,यह सामान्य प्रक्रिया है जिसमें स्रावित होने वाला स्राव रंगहीन पारदर्शी , गंधहीन दुर्गंध रहित , चिकनाई युक्त होता हैं , तथा  स्राव की मात्रा प्रत्येक स्त्री में विभिन्नता लिए हुए कम या ज्यादा हो सकती हैं। किंतु अज्ञानता और समाजिक कथित धारणा के कारण हम इस सामान्य स्राव को भी श्वेत प्रदर की श्रेणी में रख कर , अपने आप को अस्वस्थ और आत्मग्लानि से ग्रस्त स्वीकार करने लगते हैं और छद्म चिकित्सको (Unqualified or Greedy) के झांसे में आकर , स्वयं या अपनी पुत्री की निरर्थक चिकित्सा कराने हेतु आर्थिक शोषण का शिकार बन जाती हैं। उपरोक्त अवस्था, श्वेत प्रदर रोग बिल्कुल नहीं हैं ।

श्वेत प्रदर के कारण -

1. प्रजनन अंग योनि की अम्लीयता में कमी।

2. प्रजनन अंग योनि को समुचित स्वच्छ न रखना।

3. प्रजनन अंग योनि की आन्तरिक कला में किसी भी प्रकार का संक्रमण (Infection) का हो जाना।

4. एक से अधिक पुरूष साथी से संभोग करना।

5. पुरुष साथी के लिंग में किसी प्रकार का संक्रमण (STD) होना ।

6. स्त्री के शरीर की रोग प्रतिरोधक (Immunity) क्षमता का कम होना।

7. स्त्री का मधुमेह रोग (Diabetes Mellitus) से ग्रस्त होना ।

8. स्त्री में स्त्री हार्मोन की मात्रा में अनियमितता की पुनरावृत्ति का बने रहना ।

9. मिर्च - मसालेदार , तैलीय भोजन , अधिक मीठा , चाय , चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , पिज्जा आदि फ़ास्ट फूड का अधिक सेवन करना आदि ।

10. संतुलित आहार , सलाद ,फल , दूध-दही का कम सेवन करना ।

11. शारीरिक श्रम न करना आदि।

श्वेत प्रदर के लक्षण -

1. योनि स्राव का निरंतर दिन और रात में संपूर्ण समय स्रावित होते रहना।

2. योनि स्राव पारदर्शी न होकर , सफेद , हल्का हरापन या नीलापन लिए हुए हो।

3. योनि स्राव का चिपचिपा युक्त होना।

4. योनि स्राव का तीक्ष्ण / तेज दुर्गंध युक्त बदबूदार होना ।

5. योनि में जलन अथवा खुजली  होने लगती हैं।

6. शरीर में कमजोरी महसूस करना।

7. कमर में दर्द का बने रहना।

8. हल्के-2 बुखार जैसी स्थिति का बने रहना।

9. सामान्य व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता हैं।

10. भोजन में रूचि न होना।

11. मैथुन में इच्छा नहीं होती हैं ।

12. अकेले रहने की इच्छा होती हैं।

                                    श्वेत प्रदर , शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर समान रूप से अपना नकारात्मक असर अथवा प्रभाव डालता हैं , अतः श्वेत प्रदर में , Physical changes के साथ-2 हमारी Psychology भी disturb होती हैं।

श्वेत प्रदर हेतु चिकित्सा सिद्धान्त -

1. उपरोक्त बताए गए सभी कारण अथवा निदानों का संपूर्ण रूप से त्याग करें।

2. शौच करने के बाद अथवा समय-2 पर योनि को उष्ण जल / फिटकरी मिश्रित उष्ण जल से प्रक्षाचलित अथवा निरंतर धुलते रहें ।

3. नाश्ते में अंकुरित चने , दलिया , दूध , रोटी-सब्जी एवं भोजन में संपूर्ण मात्रा में दाल , हरी पत्तेदार सब्जी , प्रचुर मात्रा में चावल , दो से तीन रोटी और सुबह-शाम एक-2 गिलास दूध , घी का निरंतर सेवन करें।

4. प्रतिदिन निरंतर उचित मात्रा में फल अथवा फलों के जूस का सेवन करें ।

5. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले आहार और औषध जैसे- चिरायता , आंवला , गिलोय , मुलेठी , अश्वगंधा , शतावरी , विदारीकन्द आदि आयुर्वेद औषधि का एकल अथवा योग में निरंतर सेवन करें ।

6. प्रदर नाशक कषाय रस प्रधान आयुर्वेद औषध जैसे - पठानी लोध्र , धाय पुष्प , हरड़ , बहेड़ा ,आम की गुठली ,प्रियंगु , लाजवंती ,  रोहीतक मूल की छाल , फिटकरी आदि के चूर्ण , क्वाथ आदि में शहद मिलाकर सेवन करें।

7. योनि पिचू धारण -दिन में दो बार उपरोक्त क्वाथ अथवा फिटकरी मिश्रित जल में साफ अंगुठे के समान रुई को पूर्ण भिगोकर योनि प्रदेश में अंदर धारण कर रखें ।

                                                   उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप श्वेत प्रदर से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / स्त्री रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।



Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।














Monday, November 8, 2021

#Dengue & it's Diet schedule by साकेत गर्ग*

                                       नमस्कार देवियों और सज्जनों, मैं पुनः आप सब के समक्ष, “ स्वस्थ भारत.....स्वस्थ समाज ” की पहल को नया आयाम देने के उद्देश्य से , आप सभी का हार्दिक अभिनंदन और स्वागत करता हूॅं ।

             मित्रों आज का स्वास्थ्य विषय , वर्तमान में बहुत अधिक मानव समाज और संसाधन को क्षति पहूचाने वाला रोग हैं - ‘ डेंगू ’। यह प्रायः AEDES (एडीज) जाति के मच्छर के काटने से होने वाला सामान्य से मृत्यु कारक स्थिति उत्पन करने वाला , एक गंभीर VIRUS जन्य रोग हैं ।

                     मित्रों प्रायः इस रोग को उत्पन्न करने वाला करने वाले मच्छर , धरती तल से कम ऊंचाई पर उड़ते हुए , दिन के समय काटने वाले होते हैं ।

                              भारतवर्ष में प्रतिवर्ष डेंगू से , मानव संसाधन को भारी नुकसान उठाना पड़ता हैं और जिसके लिए भारत सरकार प्रतिवर्ष मच्छरों के उन्मूलन हेतु और डेंगू रोग की रोकथाम हेतु बहुत अधिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा , विभिन्न माध्यमों से खर्च करती हैं । डेंगू को हम आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ सन्निपातिक  ज्वर ” और BONE BREAK FEVER के नाम से भी समझ सकते हैं ।

डेंगू रोग के लक्षण -

(A.) प्रारम्भिक लक्षण -

1. शुरूआत / प्रारंभ में सामान्य ज्वर होता हैं जो बार-२ आता जाता रहता हैं । और इस Pattern को Saddle back pattern of fever कहते हैं ।

2. सिरदर्द , जोकि सिर में movement / गति देने से बढ़ता हैं ।

3. आंखों के पीछे दर्द होता हैं । (Retro orbital pain)

4. त्वचा पर स्किन रैशेज / Skin rashes का हो जाना । 

5. भूख न लगना ।

6. मुंह का कड़वा होना ।

7. कमजोरी लगना ।

(B.) मध्यम लक्षण -

8. शरीर की त्वचा पर लाल /हल्के नीले चकत्तो का दिखाईं देना ।

9. नाक , मुंह , मसूड़ों से , खांसी के साथ , मल में , पेशाब में मिश्रित होकर खून / रक्त का आना ।



10. यकृत / Liver के आकार में वृद्धि होना ।

11. हड्डियों , जोड़ों में तेज दर्द का होना ।

12. बुखार का तेजी से बढ़ जाना ।

(C.) अन्तिम और गंभीर लक्षण -

13. Blood Pressure का बहुत अधिक कम होना ।

14. रस धातु में बहुत अधिक ह्रास या कम होना अर्थात Sever Plasma loss की स्थिति बनने के कारण , Sock की स्थिति बन जाती हैं । ऐसी अवस्था में व्यक्ति मृत्यु को भी प्राप्त हो सकते हैं । अतः रोगी को प्रारंभ से ही चिकित्सा में बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए । 

डेंगू रोग की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -

1. सामान्य ज्वर की सामान्य चिकित्सा सतत करते रहें ।

2. गर्म पानी ही पीने के लिए इस्तेमाल करें । प्रतिदिन कम से कम ८-९ गिलास पानी पीना चाहिए ।

3. निरंतर सुबह-रात दो गिलास हल्दी मिलाकर दूध का सेवन करें ‌

4. प्रातः काल उठकर , दो-तीन गिलास गर्म पानी में दो नींबू निचोड़ कर खाली पेट सेवन करें ।

5. नाश्ते में , अंकुरित चने , दलिया , दूध , रोटी-सब्जी , सभी प्रकार के फलो का सेवन करें ।

6. लन्च और डीनर में भरपूर मात्रा में , हरी सब्जियां , दाल , रोटी , अदरक पर नींबू-सेंधा नमक छिड़क कर निर्मित सलाद आदि का संतुलित मात्रा में सुपाच्य और पोष्टिक ( Highly Energetic & Proteineous diet ) भोजन ही सेवन करें ।

7. प्रतिदिन , दिन में दो बार १-१ गिलास मांड / उबले चावलों का पानी में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें ।

8. प्रतिदिन , दिन में ३-४ गिलास ,अनार ,मौसमी , अदरक , तुलसी , नींबू , आंवले आदि का मिश्रित जूस निकाल कर पीएं ।

9. आयुर्वेद एकल आमहर और ज्वरहर औषधियां जैसे - चित्रक , सोंठ , पिप्पली , काली मिर्च ,पर्पटक ,अमृता , कुटकी , किरात्तिक्त (चिरायता) , कालमेघ , दालचीनी , तुलसी आदि का विभिन्न रूपों में सेवन करें ।

10. गोघृत / गाय का प्रचुर मात्रा में सेवन करें ।

11. अधिक शारीरिक श्रम न करें ।

12. शासन - प्रशासन द्वारा बताई गई सलाह और Guidelines जैसे - आस-पास पानी एकत्रित न होने दें और एकत्रित पानी में तेल डाल दें और पूरे शरीर को पूर्ण रूप से ढकने वाले वस्त्र धारण करें , आदि का पालन करें ।

https://www.facebook.com/287432231921429/posts/841229649875015/

                           उपरोक्त चिकित्सा सिद्धांत एवं चिकित्सा प्रबंधन घटक सूत्र ,को पूर्ण रूप से स्वीकार कर, Apply कर आप डेंगू रोग से मुक्ति पा सकते हैं । किंतु अगर फिर भी आपका रोग ठीक नहीं होता हैं तो शीघ्र ही कुशल अनुभवी और प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सक से संपर्क कर, चिकित्सा परामर्श लेकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं , क्योंकि डेंगू रोग , “ आयुर्वेद चिकित्सा ” द्वारा अधिक प्रभावी , सुसाध्य सिद्ध हो चुका हैं ।

                                      धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


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मठ्ठा पीने से लाभ ... ‘ तक्र ’ a good drink

                                            नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य  “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ”  की अव...