Friday, December 31, 2021

##Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी में क्या खाएं और क्या परहेज करें by Dr. Saket Kumar / mob. 08439017594 / #Ayurveda Doctor in Saharanpur , #BHARAT / ##Saket Garg**##साकेत गर्ग**

                                                     देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                                मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं -  Kidney Stone जिसे हम सामान्य भाषा में “ गुर्दे की पथरी ”और आधुनिक विज्ञान में Renal calculus तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ वृक्काश्मरी ” हैं । 

                                          देवियों और सज्जनों , हमारे आधुनिक समाज में जहां नित्त-प्रतिदिन मानसिक और तकनिकी विकास ने एक नया आयाम स्थापित किया हैं , वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण से शारीरिक रोगों को और अधिक कष्टप्रद बनाने में , आधुनिक दूषित जीवन शैली / Modern Sedentary Life Style , फास्ट फूड कल्चर , और दूषित दिनचर्या ने अपनी महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका को अंजाम दिया हैं । इन्हीं उपरोक्त कारणों की वजह से समाज का एक बड़ा वर्ग Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी रोग से रोगग्रस्त हो चुका हैं ।                            

             आइए विचार विमर्श करते हुए जानने का प्रयास करते हैं कि  Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी का निर्माण कैसे और किन कारणों से होता हैं ? इसके क्या लक्षण हैं ? इससे बचने के क्या उपाय होते हैं ? तथा इसके होने पर इसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ।

Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी के सामान्य लक्षण - 

1. Renal Colic - Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी Stone में हमारी कमर के ऊपरी , दाएं - बाएं पसलियों के नीचे मध्यम से तीव्र और असहनीय दर्द होता हैं । 

                       प्रायः यह दर्द , पेट के निचले हिस्से की ओर ,लिंग या मूत्रमार्ग की ओर भी स्थानांतरित हो सकता हैं। 

2. शरीर में भूख की कमी ।

3. मूत्रत्याग/ Urination करते हुए मूत्रमार्ग में जलन की स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती हैं । 

4. दर्द के साथ अथवा दर्द के बिना भी निरंतर उबकाई / Nausea की स्थिति अथवा उल्टी / Vomating होती रहती हैं ।

5. निरंतर अथवा समय-2 पर बुखार जैसी स्थिति / Febrile Body  या बुखार का ही बने रहना ।

6. मूत्रत्याग/ Urination करते हुए मूत्रमार्ग से रक्तस्राव / खून का आना / अथवा Bleeding होती हैं ।

7. गुर्दों में पानी भरने के कारण , संक्रमण / Infection , सूजन , यहां तक की मवाद / Pus Formation भी हो जाती हैं ।

8. थोड़ी - 2 मात्रा में बार -2 मूत्र का आना ।

Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -  

अपथ्य / क्या न खाएं या पीएं / परहेज -

1. चाॅकलेट , काॅफी , चाय , कोल्ड ड्रिंक आदि कैफ़ीन युक्त आहार अथवा तरल पदार्थ नहीं लें ।

2.  साबूत अनाज , कच्चे चावल , चने ,  सोयाबीन , उड़द , पालक , टमाटर , आंवला , बैंगन , बींस , कद्दू , चौलाई , चीकू , नमक आदि का सेवन ना करें ।

3. फास्ट - फूड जैसे - चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , मैदे से बने व्यंजनों का सेवन ना करें ।

4. दूध अथवा दूध से निर्मित दही , मक्खन , घी , पनीर आदि का प्रयोग कम या ना करें ।

5. चिकनाई एवं रिफांइड युक्त आहार / भोजन और मसालेदार भोजन का सेवन ना करें ।

7. काजू , अखरोट , बादाम , पिस्ता , किशमिश आदि Dry Fruits , खजूर , सिंघाड़ा , जामुन , कमलगट्टा आदि फलों का सेवन ना करें ।

8. मांस - मीट , प्रोटीन युक्त भोजन , अथवा Proteineous Suppliment को न लें।                                                

पथ्य / क्या खाएं या पीएं या क्या करें - 

1. प्रात:काल 2 - 4 किलोमीटर तेज गति से मॉर्निंग वॉक पर जाएं या घर पर रहकर निरंतर आधे घंटे के लिए हल्का व्यायाम , योग आदि जरूर करें ।

2. प्रतिदिन 12-15 गिलास पानी का सेवन करें । अपितु नींबू युक्त  जल , सेब का सिरका , खट्टे मौसमी - संतरों और अनार के जूस का सतत सेवन करें ।

3. वृक्क अथवा Kidney Good Health या Kidney Stone break हेतु हितकारी मूत्रल और अश्मरीभेदन आयुर्वेदिक औषधियां जैसे - अमृता (गिलोय) , पुनर्नवा , गोक्षुर , पाषाणभेद , नल , दर्भ , इक्षु , दारूहरिद्रा , तुलसी , कुलथी ,  ककड़ी के बीज , खीरे के बीज , कुश , काश , खस , लघु पंचमूल , सहिजन , श्वेतपर्पटी , यवक्षार , मूलीक्षार आदि का एकल रूप में अथवा इन औषधियों से निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत प्रयोग करें ।                                 

                             उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी के बार-2 बनने और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                      धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।










Tuesday, December 21, 2021

##Gallstones & it's Management by Dr. Saket Kumar/##Mob. 08439017594/###आयुर्वेदाचार्य/###Saket Garg***/###साकेत गर्ग***

                                                    देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                                मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं - Gall Stone जिसे हम सामान्य भाषा में “ पित्त की थैली की पथरी ”और आधुनिक विज्ञान में Cholestasis तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ पित्ताशयगत पित्ताश्मरी ” कहते हैं । 

                                          देवियों और सज्जनों , हमारे आधुनिक समाज में जहां नित्त-प्रतिदिन मानसिक और तकनिकी विकास ने एक नया आयाम स्थापित किया हैं , वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण से शारीरिक रोगों को और अधिक कष्टप्रद बनाने में , आधुनिक दूषित जीवन शैली / Modern Sedentary Life Style , फास्ट फूड कल्चर , और दूषित दिनचर्या ने अपनी महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका को अंजाम दिया हैं । इन्हीं उपरोक्त कारणों की वजह से समाज का एक बड़ा वर्ग Gall Stone / पित्त की थैली की पथरी / पित्ताश्मरी रोग से रोगग्रस्त हो चुका हैं ।

                             आइए विचार विमर्श करते हुए जानने का प्रयास करते हैं कि Gall Stone / पित्त की थैली की पथरी का निर्माण कैसे और किन कारणों से होता हैं ? इसके क्या लक्षण हैं ? इससे बचने के क्या उपाय होते हैं ? तथा इसके होने पर इसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ? 

Bile Juice / पित्त निर्माण - 

Bile Juice / पित्त का निर्माण  यकृत कोशिकाओं /  Liver Cells जिन्हें हम Hepatocytes कहते हैं , के द्वारा निरंतर रूप से निर्मित होता रहता हैं । यह एक प्रकार का पाचक रस अथवा Digestive Juice हैं , जोकि यकृत / Liver की निचली सतह पर गुब्बारे के आकार /( Balloon Shaped ), की Gall Bladder / पित्ताशय / पित्त की थैली में संग्रहित / Store होता रहता हैं और समय-2 पर भोजन करने के उपरांत यह पाचक रस / Digestive Bile Juice , पित्ताशय / Gall Bladder से आवश्यकतानुसार निकलकर छोटी आंत में जाकर खाए हुए अन्न अथवा भोजन का पाचन करता हैं ।

Bile Juice / पित्त का रासायनिक संगठन - 

आधुनिक विज्ञान के कथनानुसार यह Bile Salts , Bile Pigments , और Cholesterol / कोलेस्ट्रोल आदि का मिश्रण होता हैं । 

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी /  का निर्माण - 

शरीर में किन्हीं कारणों से अगर यकृत / Liver की उपचय और अपचय ( Metabolism ) में कुछ नकारात्मक परिवर्तन हो जाते हैं , तो Bile Juice / पित्त में Bile Salt की मात्रा कम और Cholesterol / कोलेस्ट्रॉल एवं Bile Pigments की मात्रा बढ़ जाती हैं । जिसके फलस्वरूप Bile Juice / पित्त / (पाचक पित्त) की सान्द्रता / Concentration / Viscosity बढ़ने के कारण यह अत्यधिक गाढ़ा हो जाता हैं तथा वह Gall Bladder / पित्ताशय से पाचन क्रिया के दौरान , समुचित और पूर्ण मात्रा में आंतों की ओर नहीं जा पाता हैं तथा Gall Bladder / पित्ताशय में ही आवश्यकता से अधिक संग्रहित / Store & Saturated होता रहता हैं । अत्यधिक सांद्र / Saturation होने के कारण और समय के साथ-2 कठोर / Solidify रूप लेने लगता हैं और अन्ततः कुछ समय बाद वही , Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्ताशय की पथरी का रूप ले लेता हैं । 

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी के सामान्य लक्षण - 

1. Biliary Colic - Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी , पित्ताशय की आंतरिक कला / Inner Epithelium Mucosa में  सूजन / शोथ / Inflammation और व्रण / Ulcers उत्पन्न कर देता हैं , जिसके कारण हमारे पेट के ऊपरी दाएं भाग की ओर पसलियों के नीचे दर्द होता हैं । प्रायः यह दर्द पेट के मध्य उपरी भाग में , छाती के बीच में पिछली ओर (कमर) के बीच और यहां तक की दाएं कंधे तक भी स्थानांतरित हो जाता हैं ।

                             Gall Stones / पित्ताश्मरी का दर्द प्राय: उल्टी के साथ असहनीय अवस्था तक भी पहुंच जाता हैं तथा तेज और असहनीय दर्द की ऐसी अवस्था में औषधीय चिकित्सा ना करते हुए , आकस्मिक शल्य चिकित्सा / Emergency & Cholestectomy Sergical removal of Gall Bladder or Stone , एकमात्र बेहतर विकल्प होती हैं ।  

2. शरीर में भूख की कमी ।

3. भोजन करने पर , पेट में भारीपन , गैस और अपचन / Indigestion की स्थिति बनी रहती हैं । 

4. भोजन से पूर्व अथवा भोजन करने पर अथवा निरंतर उबकाई / Nausea की स्थिति अथवा उल्टी / Vomating होती रहती हैं ।

5. निरंतर अथवा समय-2 पर बुखार जैसी स्थिति / Febrile Body  या बुखार का ही बने रहना ।

6. शरीर में Cholesterol / कोलेस्ट्रॉल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती हैं , जिसके फलस्वरूप Blood Pressure / ब्लड प्रेशर और Cardiopathy / हृदय रोग होने की भी उपद्रव के रूप में संभावना बन जाती हैं।

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -  

1. आहार / भोजन में रेशेदार सब्जी और सलाद जैसे खीरा , गाजर , चुकंदर , मूली , अदरक , शलजम , आंवला , लौकी , करेला आदि हरी सब्जियों का सतत सेवन करें ।

2. आलू , मिठाई , चावल , राजमा , उड़द , छोले जैसी दालों का सेवन ना करें ।

3. दिनचर्या में चॉकलेट , कोल्ड ड्रिंक , फास्ट - फूड जैसे - चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , मैदे से बने व्यंजनों का सेवन ना करें ।

4. ठंडे पानी का सेवन पीने के लिए ना करें , अपितु नींबू तथा सेंधा नमक युक्त गर्म जल का ही सेवन करें ।

5. दूध अथवा दूध से निर्मित दही , घी , पनीर आदि का कम प्रयोग करें ।

6. चिकनाई युक्त आहार / भोजन और मसालेदार भोजन का सेवन ना करें ।

7. प्रतिदिन 2-3 गिलास , तिल तेल में हींग - जीरा - अजवाइन - मेथी - धनिया आदि से छोंक  लगा हुआ मट्ठे / बटर्मिल्क का सेवन करें ।

8. रात्रि में सोते समय नींबू युक्त गर्म पानी के गिलास के साथ सत्त ईसबगोल अथवा  त्रिफला का एक से डेढ़ चम्मच निरंतर सेवन करें ।

9. प्रतिदिन ज्वार - बाजरा और गेहूं से निर्मित मिश्रित आटे से बनी रोटी का ही सेवन करें ।

10. प्रातःकाल , रात को 5 -6 भीगी हुई लहसुन की कलियों का छिलका उतारकर , बारीक काटकर दो गिलास पानी के साथ शौचक्रिया से पहले सेवन करें ।

11. प्रात:काल 2 - 4 किलोमीटर तेज गति से मॉर्निंग वॉक पर जाएं या घर पर रहकर निरंतर आधे घंटे के लिए व्यायाम , योग आदि जरूर करें ।

12. Cholesterol / कोलेस्ट्रोल आदि को कम करने वाली कफशामक  और मेदधातुशामक औषधियों जैसे - शुण्ठी , पिप्पली , काली मिर्च , दालचीनी , आंवला , चित्रक , हल्दी , अर्जुन , गुग्गुल आदि एकल औषधियों अथवा इनसे निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत सेवन करें ।

13. यकृत अथवा Liver Good Health हेतु हितकारी आयुर्वेदिक औषधियां जैसे - अमृता (गिलोय) , पुनर्नवा , कालमेघ , किराक्ततिक्त (चिरायता) , चित्रक , कुटकी , भृंगराज , घृत कुमारी , ताम्र भस्म आदि का एकल रूप में अथवा इन औषधियों से निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत प्रयोग करें ।

                                           उपरोक्त चिकित्सा बिंदु केवल Silent Gall Stone , Chronic Cholecystitis अथवा Smaller sized Gall Stone / पित्ताश्मरी के अधिक बड़े ना होने की दशा में ही , प्रयोग करने चाहिए । अत्याधिक तेज दर्द / पीड़ा और Acute cholesystitis होने पर और Gall Stone का अत्यधिक बड़ा आकार होने की दशा में आकस्मिक एवं आधुनिक शल्य चिकित्सा / Emergency Cholestectomy Sergical removal of Gall Bladder or Stone ही श्रेष्ठतम सिद्ध  चिकित्सा होती हैं । अतः अनावश्यक रूप से औषधीय अथवा Medicinal Treatment का सहारा ना लें । 

                      उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप Gall Stone / पित्ताश्मरी के बार-2 बनने और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।



Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।









मठ्ठा पीने से लाभ ... ‘ तक्र ’ a good drink

                                            नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य  “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ”  की अव...