Sunday, August 14, 2022

मठ्ठा पीने से लाभ ... ‘ तक्र ’ a good drink

                                           नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को नया आयाम देने के उद्देश्य से एक नए स्वास्थ्य विषय  “ मठ्ठा पीने से लाभ ” , को लेकर उपस्थित होते हुए , आप सभी का अभिनंदन करता हूं।

मट्ठे के गुणो का सामान्य परीचय - 

1. लघु 

2. रूक्ष

3. उष्ण वीर्य

4. वात - कफहर

5. ग्राही

मठ्ठा सेवन द्वारा साध्य रोग -

1. #अजीर्ण / Indigestion 

2. #आटोप / Gas in abdomen 

3. #मधुमेह / Diabetes mallitus 

4. #अतिस्थौल्यता / Obesity / Overweight 

5. #मंदाग्नि / Low Appetite 

6. #वातज-कफज रोग

7. #संग्रहणी / Colitis / Ibs

8. #शुष्कार्श / External piles etc.

                               ऊपर बताए गए प्राय: सभी रोगों की तक्र चिकित्सा , आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में की जाए तो बेहतर
और उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं ।

Contraindications of तक्र सेवन -

                             तक्र सेवन , कुछ विशेष परिस्थितियों में रोगियों द्वारा ग्राह्य नहीं होती हैं , जैसे -

1. चोट लगने पर 

2. कोई जख्म / व्रण होने पर 

3. नाक से खून आने पर

4. रक्तज - पित्तज रोगों में  आदि।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।














Monday, August 1, 2022

Leech therapy...boon of आयुर्वेद /Dial..08439017594

                                          नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को नया आयाम देने के उद्देश्य से एक नए स्वास्थ्य विषय  “ जलौका रक्तावसेचन चिकित्सा ” , को लेकर उपस्थित होते हुए , आप सभी का अभिनंदन करता हूॅं ।

                                          जिसे हम  LEECH THERAPY  तथा “ जोंक द्वारा पुराने रोगो की चिकित्सा ”  कह सकते हैं । मित्रों आइए जानने की कोशिश करते हैं - LEECHES / जोंक द्वारा कैसे और किन - 2 रोगों की चिकित्सा संभव हैं ?

Diseases in which Leech Therapy helpful.. video link below

https://youtu.be/qfSgj2OCCs4 by साकेत गर्ग/mob. 08439017594

LEECH THERAPY / जलौका चिकित्सा का सामान्य परीचय - 

                                  प्राय: यह देखा गया हैं कि अधिकतर हमारे शारीरिक रोगों के कारण में , वातादि दोषों द्वारा रक्त का दूषित होना एक सामान्य कारण होता हैं । रक्त दूषण की ऐसी अवस्था में रक्त आश्रित वात - पित्त - कफ आदि दोषों को शोधन और शमन चिकित्सा द्वारा नियंत्रित कर सामान्य किया जाता हैं । शमन चिकित्सा , संतुलित आहार - बिहार और औषधि पर आधारित होती हैं , किंतु बहुत बार रोगों में वातादि दोष इतने प्रकुपित हो जाते हैं कि उन्हें शमन चिकित्सा के द्वारा हम सामान्याव्यवस्था में नहीं ला सकते , ऐसी अवस्था में रक्त की शोधन चिकित्सा , कुशल और प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा ही दोषों को सामान्य अवस्था में लाया जा सकता हैं । 

                                       प्राचीनतम काल में विश्वमित्र के पुत्र आचार्य सुश्रुत द्वारा लिखित “ सुश्रुत संहिता ” , धनवंतरी संप्रदाय की उत्कृष्ट शल्य विषय आधारित उत्कृष्ठ संहिता हैं । जिसका काल प्राय: दूसरी सदी सुनिश्चित हैं । सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान अध्याय 13 में वातादि दोषों द्वारा दूषित रक्त की शोधन चिकित्सा का विस्तृत और अतुलनीय वर्णन किया गया हैं । अतः प्राचीनतम काल से ही हमारे ऋषि मुनियों और आचार्य चिकित्सकों द्वारा जोंक / जलौका / Leech का इस्तेमाल रक्त को शुद्ध करने और उसके उपरांत रोगों की चिकित्सा में किया जाता रहा हैं । 

Complete Leech Therapy ..... Video link below 

https://youtu.be/vXelfGRvhFY

                            जलौकाएं प्राय: संपूर्ण विश्व में मुख्यत: भारतवर्ष में , वर्षा ऋतु के समय , अधिकतर कम गहरे साफ और पथरीली - हरियाली वाली भूमि जैसे झरने , तालाब , कम गहरी नदियां , तराई प्रदेश -  वन आदि में पाई जाती हैं और ये ही जलौका के मुख्य आश्रय स्थान होते हैं । जलौकाएं प्राय: 12 प्रकार की , जिसमें 6 प्रकार सविष और 6 प्रकार निर्विष बताए गए हैं । अतः कुशल आयुर्वेद चिकित्सक के द्वारा ही निर्विष जोंक द्वारा ही रोगों की चिकित्सा करानी चाहिए । मात्र तभी रोगों की जलौका चिकित्सा में उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं ।

जलौका रक्तावसेचन चिकित्सा / Leech Therapy द्वारा साध्य रोग -

1. #Hair fall etc.

2. #Migraine 

3. #Sinusitis

4. #Psoriasis

5. #Eczema

6. #Acne 

7. #Dark pigmentation

8. #Thrombosed piles

9. #Varicose vein

10. #Vericocele

11. #Pain 

12. #Rheumatoid arthritis 

13. #Gout 

14. #Lumbar spondylitis 

15. #Cervical spondylitis  

16. #Hyper cholesterol etc.

                               ऊपर बताए गए प्राय: सभी रोगों की जलौका चिकित्सा , आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में अगर उत्कृष्ट और सतत चिकित्सा की जाए तो बेहतर और उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं ।

Contraindications of Leech Therapy -

                             जलौका चिकित्सा कुछ विशेष परिस्थितियों में रोगियों द्वारा ग्राह्य नहीं होती हैं , जैसे -

1. Varmiphobia

2. Low platelet count

3. Haemophilia

4. Anemia

5. Low blood pressure 

How leech sucks blood ?.......Video link below 

https://youtube.com/shorts/GlVKhv2AuKs?feature=share # Live presentation by Saket Garg**/mob. 08439017594               

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


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Sunday, February 27, 2022

शीघ्रपतन/Premature Ejaculation by Dr. Saket Kumar mob.08439017594/साकेत गर्ग/सहारनपुर/भारत

                                                            देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                                     मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं - Premature Ejaculation & it's treatment जिसे हम सामान्य भाषा में “ शीघ्रपतन ”और आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ शुक्र धातु वैगुण्यता / शुक्र व्यापद् ” कह सकते हैं । 

वर्तमान समय में हम आधुनिकता की आड़ में कहीं न कहीं पौरुष क्षमता को खो बैठे है ं । प्रायः ये देखा गया है कि, नवयुवक पीढ़ी में भी संभोग क्षमता में नकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है ं ।

                                                                इस प्रकार के अनेक लक्षण, जैसे - लिंग में तनाव की कमी, संभोग के दौरान या उससे पूर्व ही वीर्यपात हो जाना, संभोग में जननांग में दर्द होना, संभोग में जननांग में जलन होना, वीर्य का बहुत पतला आना, संभोग में अरुचि और उसको निरर्थक विषय मानना आदि अनेक नकारात्मक लक्षण नवयुवक पीढ़ी को अंदर ही अंदर कुंठित करते हैं । जिसके परिणामस्वरूप मानव संसाधन न तो अपने दैनिक कार्यो को अच्छे से ही कर पाता हैं अपितु वह निरर्थक ही अप्रशिक्षित और अपंजीकृत चिकित्सकों से चिकित्सा लेने में मजबूर हो जाता है । यहाँ तक की वह बेहद हृदय के लिए खतरनाक सिद्ध होने वाली आधुनिक औषधि/Allopathic medicine  का सतत् प्रयोग कर, अपने आप को अंधेरे में डूबा देता हैं ।

आइए आज ऐसी ही मुख्य समस्या “ शीघ्रपतन ” को समाधान सहित , जानने और समझने का सार्थक प्रयास करते हैं ।


“ शीघ्रपतन ” क्या हैं ? -

संभोग / Sex / Sexual Intercourse के समय या इसकी शुरुआत की अवस्था में जैसे - Fore Play , Kissing या यहां तक की अपने स्त्री मित्र / पत्नी साथी के साथ संभोग के स्पर्श मात्र या विचार मात्र से ही , लिंग / Male Sex Organ / Penis से , यौन संतुष्टि से पहले ही वीर्य / Semen का स्खलित या निकल जाना ही शीघ्रपतन हैं ।

“ शीघ्रपतन ” के कारण क्या हैं ? -

इसके मुख्यता कई कारण हो सकते हैं , जैसे -

अ.) Psychological causes

ब.) Mental causes

स.) Physical causes

 अ.) Psychological causes - यह शीघ्रपतन के होने का सर्वाधिक पाए जाने वाला कारण हैं , जो प्रायः उन लोगों को होता हैं जो नवविवाहित या पहली बार संभोग / Sex करने जा रहे हो । ऐसी अवस्था में पुरुष साथी के मन में संभोग / Sex को लेकर अनेक प्रश्न जैसे - संभोग कैसे करना हैं ? इसकी कैसे शुरूआत करनी है ? कौन - २ से आसनों / Sexual Positions का इस्तेमाल श्रेष्ठतम रहेगा ? क्या मैं अपनी पत्नी , प्रेमिका या स्त्री मित्र को संतुष्ट कर पाऊंगा ? आदि । यहां तक कि Sex को लेकर अत्यधिक यौन उत्तेजना या इच्छा / Hyper Sexual Excitement के कारण भी पुरुष साथी Male , ऊहापोह या Negative Sexual Behaviour की अवस्था में Sex करता है और वह शीघ्र ही वीर्यपतन कर बैठता है । किंतु यह कारण सामान्य स्वाभाविक  है और Sexual Education से इसका बेहतर समाधान किया जा सकता हैं ।

ब.) Mental causes - अगर उपरोक्त कारण आपको मानसिक क्षति पहुंचाता है और आप पर हावी होकर आप में Sex Phobia उत्पन्न कर देता है या अन्य भी मानसिक तनाव जैसे - Depression / अवसाद , Stress / मानसिक तनाव , Unwanted Sex / अनचाहा संभोग , Sex not in proper suitable place and environment / असुरक्षित जगह या वातावरण में संभोग , Quick sex or Sex in hurry / संभोग में जल्दबाजी , Forcedful sex / जबरदस्ती संभोग या बलात्कार आदि अशांत मानसिक अवस्था में संभोग या Sex करने पर भी शीघ्रपतन की अवस्था उत्पन्न हो जाती हैं ।

स.) Physical causes - शरीर में Male Hormone -  Testosterone का सामान्य मात्रा से अधिक मात्रा में होने के कारण और कुछ शारीरिक रोग जैसे - मधुमेह / Diabetes , मूत्र संक्रमण / UTI , पौरूष ग्रंथि में संक्रमण / Prostatitis , या पौरूष ग्रंथि के आकार में वृद्धि / BPH आदि भी शीघ्रपतन के मुख्य कारण हो सकते हैं ।

“ शीघ्रपतन ” को बिमारी कब मानें ? - 

प्रायः इस अवस्था से प्रत्येक दम्पत्ति / लैंगिक साथी को जीवन में एक नहीं अनेक बार गुजरना पड़ता हीं हैं और जो स्वाभाविक अवस्था भी हैं और बिना ईलाज के स्वतः ही सही भी हो जाती हैं । किंतु अगर उपरोक्त अवस्था अर्थात 1 मिनट से पहले वीर्यपतन , लगातार कम से कम 6 से 8 महिने तक रहें और उसकी बार -2 पुनरावृत्ति होती रहें तो इस अवस्था को रोग स्वीकार कर , कुशल , अनुभवी , प्रशिक्षित चिकित्सक से परामर्श लेकर इस रोग का ईलाज कराना सुनिश्चित करना चाहिए ।


Just click and watch link below...by साकेत गर्ग

https://youtu.be/rSZe-slpxbc


 “ शीघ्रपतन ” की अफवाहें / Myth -

इस अवस्था से संबंधित कुछ सवाल और कुछ अफवाहें मेरे रोगियों द्वारा पूछीं जाती रही हैं , जिनका समाधान सहित मेरे द्वारा उत्तर भी बताना यहां आवश्यक और वांछनीय है । जैसे -

प्रश्न 1. शीघ्रपतन बचपन में की गई गलतियों के कारण होने वाली बिमारी है ।

उत्तर - नहीं ।

प्रश्न 2 . शीघ्रपतन शारीरिक गुप्त रोग है ।

उत्तर - नहीं ।

प्रश्न 3 . शीघ्रपतन शारीरिक मर्दानी कमजोरी उत्पन्न करता है ।

उत्तर - नहीं ।

प्रश्न 4 . शीघ्रपतन के कारण बच्चे नहीं होते ।

उत्तर - ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं ।

प्रश्न 5 . शीघ्रपतन अधिक हस्तमैथुन के कारण होने वाला रोग है ।

उत्तर - बिल्कुल नहीं ।

प्रश्न 6 . शीघ्रपतन का ईलाज संभव नहीं है ।

उत्तर - इस रोग पूरी तरह सही किया जा सकता हैं ।

प्रश्न 7 . शराब पीकर Sex करने में यह समस्या खत्म हो जाती हैं ।

उत्तर - बिल्कुल नहीं , अपितु शुरू में Psychologically शराब का              तात्कालिक लाभ मिल सकता हैं , किन्तु कुछ समय बाद यह              समस्या और अधिक बढ़ जाती हैं ।

 “ शीघ्रपतन ” की चिकित्सा -

ऐमें मैं अपने चिकित्सीय अनुभव के आधार पर आपको मात्र दस उपाय अपनाने की सलाह दे रहा हूँ, ताकि आप कुशल संभोग कर अपने पार्टनर को और स्वयं को पूर्ण संतुष्ट कर सकें । जैसे-

1. उपरोक्त कारणों को समझ कर उनका त्याग करें

2. संभोग करने से पूर्व, मानसिक तनाव से दूर रहे | किसी भी प्रकार        का भय, ग्लानी, जल्दबाजी में संभोग न करें | अपने पार्टनर की          अनुमति या इच्छा होने पर ही संभोग करने के बारे में सोचें ।

3. संभोग करने  से पूर्व, वातावरण अनुकूल बना ले | जैसे - संभोग          वाली जगह भय रहित, सौगंधयुक्त, उचित तापमान वाली , और          पार्टनर की मनपसंद वस्तुओं से युक्त हो ।

4. संभोग से पूर्व, रोमांचक बातों द्वारा एवं चुंबन, अंग स्पर्श आदि             /fore play द्वारा पार्टनर को संभोग करने हेतु उत्तेजित कर             मानसिक स्थिति में जरूर ले जाए ।

5. संभोग शुरू होते हुए सिर्फ संभोग संबंधित विषयों पर ही टिप्पणी      अथवा संभोग को प्रेरित करने वाली बातें ही करें, अन्य किसी भी        विषय या परिवारिक समस्या का स्मरण या चर्चा न करें ।

6. योनि विस्तारण / Vaginal Opening अथवा लिंग                        उत्थान/Erectile Penis की दशा में ही संभोग / Penis                Pentration प्रारंभ करें ।

                 Penis entry / लिंग प्रवेश से पूर्व , लिंग पर कोई              प्राकृतिक Lubricant / चिकनाई जैसे - तैल आदि या                      Condom आदि  लगाकर Sex प्रारंभ करना चाहिए ।

7.  संभोग कलाओं/Sex Position में निरन्तर परिवर्तन करते रहे ंं |       हमेशा एक ही कला में संभोग न करें ।

8. संभोग की इच्छा वाले दिन अथवा रात्रि के समय या उससे पूर्व          अपने पार्टनर को कोई उपहार भेंट कर या Surprised  देकर            प्रसन्नचित्त रखें | किसी भी प्रकार के विवादित विषय या मतभेद          या चर्चा से बचें अथवा दूर रहें ।

9. अपने व्यापार/Bussiness loss, नौकरी/Job insecurity or      Demotion, परिवारिक असफलता Familiar disput, का            जिम्मेदार पार्टनर को न ठहराए ।

10. अपने पार्टनर की किसी और से तुलना न करें | संभोग सफल या        असफल होने की दोनों ही दशा में पार्टनर को आलिंगन करते हुए        कुछ समय आत्मियता स्वरूप लेटे रहे ं। 

                                             शीघ्रपतन की स्थिति में पत्नी प्रेमिका या महिला साथी को धैर्य रखते हुए , अपने पुरूष साथी या पति को धनात्मक सोच रखने के साथ पुनः प्रयास करने हेतु स्वयं ही लैंगिक रूप से उत्तेजित करना चाहिए । ना कि किसी भी प्रकार का नकारात्मक वचन कहते हुए निराश नहीं होना चाहिए ।    

औषधीय चिकित्सा / Meicinal Treatment -

                      संभोग एक कला हैं , जिसे निश्चित ही ऊपर बताए गए विहार / व्यवहार / आचरण / नियमों द्वारा और अधिक बेहतर बनाया जा सकता हैं , किन्तु उपरोक्त बिन्दुओं के साथ-साथ अगर आयुर्वेदीय “ वाजीकरण चिकित्सा ” और इसके आधीन “ वृष्य / Aphrodisiacs ” , मेध्य रसायन / Antidepressants & Mood Relaxant आयुर्वेद औषधियों जैसे - अश्वगंधा(मेध्य) , माष , कपिकच्छू (मेध्य) , गोक्षुर , अकरकरा (शुक्रस्तम्भक) , शुण्ठी , मूसली , जातीफल (शुक्रस्तम्भक) , अमृता(मेध्य) , वंश , शतावरी (मेध्य) , श्रंगाटक , केशर ,भांग (शुक्रस्तम्भक) , धतूरा (शुक्रस्तम्भक) , अहिफेन (शुक्रस्तम्भक) , तगर (मेध्य) , शिलाजीत , गोघृत , गोदुग्ध , रस योग और स्वर्ण - नाग - वंग - यशद भस्म आदि औषधियों का एकल या इनसे निर्मित योगो का , किसी कुशल , अनुभवी , प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा  परामर्श उपरांत प्रयोग करें ।

                                                 उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप शीघ्रपतन / Premature Ejaculation & it's Complications /  उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं और संभोग को और अधिक बेहतर करते हुए हम अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।  

                                     

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                         Regarding.....साकेत गर्ग 

                           Mob. 08439017594


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Wednesday, February 9, 2022

#Peptic Ulcer & it's treatment by Dr. Saket Kumar/mob.08439017594/#साकेत गर्ग**/#भारत**

                                                                  समस्त स्वास्थ्य मित्रों को “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा के संज्ञान में, मेरा पुनः नमन और अभिनंदन । देवियों और सज्जनों आज का स्वास्थ्य विषय हैं “ PEPTIC Ulcer ” । 

                             जिसे सामान्य भाषा में ‘ पेट में अल्सर ’ और आयुर्वेद विज्ञान ‘ अन्नद्रव शूल और परिणाम शूल ’ के समरूप कह सकते हैं । वैसे तो इस रोग के बहुत कारण होते हैं किंतु कुछ मुख्य कारणों को नीचे इंगित किया जा रहा हैं -

Peptic Ulcer के मुख्य कारण -

1.  मिर्च - मसाला , आचार , और Spicy diet का निरंतर और अधिक मात्रा में ग्रहण करना ।

2. मीट - मछली -  अंडे आदि मांसाहारी आहार का सेवन करना ।

3. बीड़ी , तम्बाकू , सिगरेट , शराब / एल्कोहल आदि अन्य नशीले पदार्थों और तेज चाय , काॅफी , कोल्डड्रिंक जैसे पेय पदार्थों का अधिक और लंबे समय तक प्रयोग करना ।

4. खाने में रेशेदार / Fibrous Diet जैसे सूरण की सब्जी , गाजर , खीरा , चुकुन्दर , नाशपाती , चीकू , संतरा , पपीता , केला , अमरूद  आदि फलों - सब्जियों - और सलाद का अभाव या इन्हें कम खाना ।

5. बिना रेशेदार आहार जैसे मैदे से निर्मित आहार अथवा फास्ट फूड मोमोज , चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , पिज्जा आदि का अधिक सेवन करना ।

6. कम पानी पीना या भोजन के तुरंत बाद पानी का सेवन करना ।

7. शारीरिक श्रम एवं एक्सरसाइज और योग आदि को ना करना ।

8. भोजन की अनियमित मात्रा अर्थात कभी ज्यादा कभी कम सेवन करना और भोजन को नियमित समय पर ना लेते हुए कभी बहुत जल्दी और कभी भोजन काल के बहुत बाद में भोजन ग्रहण करना ।

9. Liver / यकृत संबंधी किसी बिमारी से ग्रसित होना ।

10. आधुनिक जीवन शैली और दूषित आहार प्रणाली का सेवन करना ।

11. शारीरिक श्रम एवं एक्सरसाइज और योग आदि को ना करना एवं मानसिक तनाव से ग्रस्त रहना ।

Peptic Ulcer के सामान्य लक्षण -

1. पेट के ऊपरी हिस्से में अधिकतर मध्य भाग में दर्द बने रहना ।

2. भोजन के पहले अथवा बाद में पेट दर्द का होना । अधिकतर यें दर्द रात्रि में 2 - 3 बजे के बाद होता हैं ।

3. पेट में गैस , तेजाब / Acidity का निरंतर बनें रहना ।

4. कभी - कभी मुंह में खट्टा पानी का आना और छाती में जलन का होना ।

5. भोजन करने के बाद पेट में अपचन और भारीपन का होना ।

6.  अधिक तीव्र प्रकोप में , व्रण / Ulcer से रक्तस्राव / Bleeding का होना आदि ।


Peptic Ulcer की चिकित्सा -

1. शारीरिक श्रम न करना आदि उपरोक्त सभी कारणों का त्याग करना । जैसे - नियमित रूप से प्रात:काल योग , व्यायाम , Morning walk , Excercise आदि को करना ।

2. प्रातःकाल  खाली पेट , 2-3 गिलास नींबू पानी अथवा गर्म पानी का सेवन करना और अतिरिक्त पानी पीकर , पेट से पानी निकालकर उल्टी कर दें ।

3. नाश्ते में अंकुरित चने , सोयाबीन , दलिया , आटे के जवे , रोटी-सब्जी , फल , दूध ( घृत युक्त ) आदि का नियमित सेवन करना ।

4. लंच - डीनर में बिना छाने आटे की रोटी , सब्जी , दाल , आदि का खीरा - ककड़ी - गाजर की सलाद के साथ सेवन करना ।

5. भोजन से प्राय एक घंटा पहले और एक घंटा बाद तक जल का सेवन ना करना ।

6. भोजन के तुरंत बाद ना सोना ।

7. अधिक तेजाब और छाती में जलन होने पर , निरंतर एक गिलास दूध से दो केले , या 1/2 कप गुनगुने पानी में 1/4 चम्मच खाने का सोडा मिलाकर पीए ।
 
8. रोज रात्रि में सत् ईसबगोल / त्रिफला चूर्ण / निशोथ चूर्ण  1-2 चम्मच / 1 कप पानी में भिगोकर अमलतास की फलमज्जा (गुद्दी) आदि शक्कर के दूध अथवा गर्म जल से सेवन करें । 

9. निरंतर दिनचर्या में सुबह - शाम गर्म पानी से खाली पेट , हरड़ या आंवले का मुरब्बा या सफेद पेठे के टुकड़े ग्रहण करें ।

10. भरपूर नींद लें और मानसिक तनाव कम करें



CLICK & WATCH ..... above link of #PEPTIC ULCER
            

                                        उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप Peptic Ulcer और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।                    

                                        धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।

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Tuesday, February 1, 2022

#Psoriasis treatment by Dr. Saket Kumar/mob.08439017594/#Saket Garg**/#साकेत गर्ग/#Saharanpur/#BHARAT

                                         नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को नया आयाम देने के उद्देश्य से एक नए स्वास्थ्य विषय  “ सोरिएसिस ”  की पुनरावृत्ति क्यों ? , को लेकर उपस्थित होते हुए , आप सभी का अभिनंदन करता हूॅं । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में  Psoriasis  तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से  “ एककुष्ठ ”  कह सकते हैं ।

                                                मित्रों आइए जानने की कोशिश करते हैं - सोरिएसिस हैं क्या ? , और कारण सहित इसके क्या लक्षण एवं चिकित्सा हैं ?

सोरिएसिस / Psoriasis के कारण -

1. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अनुसार ,इस रोग का कोई सुनिश्चित कारण नहीं हैं ।

2. आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान अनुसार रस धातु में वात और पित्त दोषों की बाहुल्यता के कारण , त्रिदोष विषमता हो जाती हैं । जिसके फलस्वरूप , त्वचा , लसिका , रक्त , मांस धातुएं दूषित हो जाती हैं । 

3. अधिक मानसिक तनाव और ठंडा-गर्म वातावरण परिवर्तन , ऋतु परिवर्तन इस रोग की वृद्धि हेतु Trigger factor हो सकते हैं ।

4. मिर्च - मसालेदार , तैलीय भोजन , अधिक मीठा , चाय , चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , पिज्जा आदि फ़ास्ट फूड , और दही का अधिक सेवन करना । 

5. संतुलित आहार , सलाद , फल का कम सेवन करना ।

6. अधर्म , पाप में संलग्न रहना एवं सद्वृत का पालन न करना आदि ।

7. अंडा , मीट - मांस , मछली और दूध का एक साथ सेवन करना आदि ।

सोरिएसिस / Psoriasis के लक्षण -

1. त्वचा में रूखापन और उष्णता बढ़ने के कारण त्वचा में फटन होने से दरारें पड़ जाती हैं ।

2. त्वचा में असहनीय जलन और खुजली  होने लगती हैं ।

3. त्वचा में लाल रंग के व्रण  Skin Ulcer  बन जाते हैं । जिनके ऊपर सफेद पपड़ी निरंतर उतरती रहती हैं ।

4. कभी-2 त्वचा  मोटी और अधिक सतह / Multiple Layered Skinवाली हो जाती हैं ।

5. यें व्रण / Skin Uler बार -2 , दबते - उभरते रहते हैं ।

6. शरीर में कमजोरी महसूस करना ।

7. शरीर में मुख्यतः जोड़ो / Joints में अकड़ाहट के साथ दर्द होता हैं ।

8. हल्के-2 बुखार जैसी स्थिति का बने रहना ।

9. सामान्य व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता हैं और रोगी को अकेले रहने की इच्छा होती हैं ।

10. रोगी को भोजन में रूचि नहीं होती हैं ।

11. मैथुन में इच्छा नहीं होती हैं । और रोगी समाजिक रूप से अपने आप को अलग - थलग कर लेता हैं ।

12. रोगी को कम नींद आती हैं ।

                                                      सोरिएसिस / Psoriasis , शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर समान रूप से अपना नकारात्मक असर अथवा प्रभाव डालता हैं , अतः सोरिएसिस में , Physical changes के साथ-2 हमारी Psychology भी disturb होती हैं ।

सोरिएसिस / Psoriasis हेतु चिकित्सा सिद्धान्त -

1. उपरोक्त बताए गए सभी कारण अथवा निदानों का संपूर्ण रूप से त्याग करें।

2. नाश्ते में अंकुरित चने , दलिया , दूध , रोटी-सब्जी एवं भोजन में संपूर्ण मात्रा में दाल , हरी पत्तेदार सब्जी , प्रचुर मात्रा में चावल , दो से तीन रोटी और सुबह-शाम एक-2 गिलास दूध , घी का निरंतर सेवन करें।

3. प्रतिदिन निरंतर उचित मात्रा में फल अथवा फलों के जूस , पानी का अधिक से अधिक सेवन करें ।

4. रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करने वाले आहार और औषध जैसे- चिरायता , आंवला , गिलोय , मुलेठी , अश्वगंधा , शतावरी आदि आयुर्वेद औषधि का एकल अथवा योग में निरंतर सेवन करें ।

6. कुष्नाशक आयुर्वेद औषध जैसे - त्रिफला , जाती , सारिवा , खदिर , घृत कुमारी , आंवला का सेवन करें ।

7. लेप धारण - दिन में बार -2 नारीयल तैल और घृत कुमारी /  Aloe vera gel को मिलकर त्वचा पर अधिक से अधिक लगाकर रखें ।

8. AntiStress / Anxiety reliever / Antidepressants आयुर्वेद मेध्य रसायन औषधियों जैसे - अश्वगंधा , शतावरी , मुलेठी , ब्राह्मी , सर्पगंधा आदि का निरंतर सेवन करें ।

9. धैर्य रखें  i.e. Have Patience .


 .                  Click and watch the link below

 .  https://youtu.be/FPIbo7kTAvA


                                                   उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप सोरिएसिस / Psoriasis से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।














Friday, January 21, 2022

#Fatty Liver & it's treatment by Dr. Saket Kumar/#Saharanpur/#BHARAT/mob. 08439017594/#साकेत गर्ग

                                                     देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                           मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं - NAFLD जिसे हम सामान्य भाषा में “ Fatty Liver ”और आधुनिक विज्ञान में Hepatic Steatosis तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ कफ - मेद बाहुल्य यकृदाल्योदर ” कहते हैं । 

                                          देवियों और सज्जनों , हमारे आधुनिक समाज में जहां नित्त-प्रतिदिन मानसिक और तकनिकी विकास ने एक नया आयाम स्थापित किया हैं , वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण से शारीरिक रोगों को और अधिक कष्टप्रद बनाने में , आधुनिक दूषित जीवन शैली / Modern Sedentary Life Style , फास्ट फूड कल्चर , और दूषित आहार - प्रणाली एवं दिनचर्या , आवश्यकता से अधिक - निरर्थक एंटीबायोटिक , स्टेराॅयड , दर्द निवारक (Unnecessary and over use of Antibiotics , Steroids , Painkiller) Allopathic Medicine आदि ने अपनी महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका को अंजाम दिया हैं । इन्हीं उपरोक्त कारणों की वजह से समाज का एक बड़ा वर्ग क्रमशः यकृत संक्रमण / Liver Infection , यकृतशोथ / Liver Inflammation , और अन्ततः यकृत कोशिकीय क्षति / Liver Cells (Hepatocytes) Necrosis के कारण Adipose Tissue Mal-metabolism से यकृतवृद्धि / Hepatomegaly / NAFLD / Fatty Liver / Hepatic Steatosis रोग से रोगग्रस्त हो चुका हैं ।

                             आइए विचार विमर्श करते हुए जानने का प्रयास करते हैं कि यकृतवृद्धि / Hepatomegaly / Fatty Liver / NAFLD / Hepatic Steatosisरोग के क्या लक्षण हैं ? इससे बचने के क्या उपाय होते हैं ? तथा इसके होने पर इसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ? 

यकृतवृद्धि / Hepatomegaly / Fatty Liver / NALFD / Hepatic Steatosis रोग के सामान्य लक्षण - 

1. हमारे पेट के ऊपरी दाएं भाग की ओर पसलियों के नीचे दर्द होता हैं । प्रायः यह दर्द पेट के मध्य उपरी भाग में भी स्थानांतरित हो जाता हैं । 

2. शरीर में भूख की कमी ।

3. भोजन करने पर , पेट में भारीपन , गैस और अपचन / Indigestion की स्थिति बनी रहती हैं । 

4. भोजन से पूर्व अथवा भोजन करने पर अथवा निरंतर उबकाई / Nausea की स्थिति अथवा उल्टी / Vomating होती रहती हैं ।

5. Liver Enlargement / यकृत के आकार में वृद्धि हो जाती हैं ।

6. शरीर में Cholesterol / कोलेस्ट्रॉल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती हैं , जिसके फलस्वरूप Blood Pressure / ब्लड प्रेशर और Cardiopathy / हृदय रोग होने की भी उपद्रव के रूप में संभावना बन जाती हैं।

7. अन्ततः यकृत कोशिकाएं मृत / Liver Failure की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं । 

                         ##CLICK & WATCH##                  https://youtu.be/_N6KBYVpteY


यकृतवृद्धि / Hepatomegaly / Fatty Liver / NAFLD / Hepatic Steatosis रोग के सामान्य की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -  

1. आहार / भोजन में रेशेदार सब्जी और सलाद जैसे खीरा , गाजर , चुकंदर , मूली , अदरक , शलजम , आंवला , लौकी , करेला आदि हरी सब्जियों का सतत सेवन करें ।

2. आलू , मिठाई , चावल , राजमा , उड़द , छोले जैसी दालों का सेवन ना करें ।

3. दिनचर्या में चॉकलेट , कोल्ड ड्रिंक , फास्ट - फूड जैसे - चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , मैदे से बने व्यंजनों का सेवन ना करें ।

4. ठंडे पानी का सेवन पीने के लिए ना करें , अपितु नींबू तथा सेंधा नमक युक्त गर्म जल का ही सेवन करें ।

5. दूध अथवा दूध से निर्मित दही , घी , पनीर आदि का कम प्रयोग करें ।

6. चिकनाई युक्त आहार / भोजन और मसालेदार भोजन का सेवन ना करें ।

7. प्रतिदिन 2-3 गिलास , तिल तेल में हींग - जीरा - अजवाइन - मेथी - धनिया आदि से छोंक  लगा हुआ मट्ठे / Butter milk का सेवन करें ।

8. रात्रि में सोते समय नींबू युक्त गर्म पानी के गिलास के साथ सत्त ईसबगोल अथवा  त्रिफला का एक से डेढ़ चम्मच निरंतर सेवन करें ।

9. प्रतिदिन ज्वार - बाजरा और गेहूं से निर्मित मिश्रित आटे से बनी रोटी का ही सेवन करें ।

10. प्रातःकाल , रात को 5 -6 भीगी हुई लहसुन की कलियों का छिलका उतारकर , बारीक काटकर दो गिलास पानी के साथ शौचक्रिया से पहले सेवन करें ।

11. प्रात:काल 2 - 4 किलोमीटर तेज गति से मॉर्निंग वॉक पर जाएं या घर पर रहकर निरंतर आधे घंटे के लिए व्यायाम , योग आदि जरूर करें ।

12. Cholesterol / कोलेस्ट्रोल आदि को कम करने वाली कफशामक  और मेदधातुशामक औषधियों जैसे -  कांचनार , शुण्ठी , पिप्पली , काली मिर्च , दालचीनी , आंवला , चित्रक , हल्दी , अर्जुन , गुग्गुल आदि एकल औषधियों अथवा इनसे निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत सेवन करें ।

13. यकृत अथवा Liver Good Health हेतु हितकारी आयुर्वेदिक औषधियां जैसे - अमृता (गिलोय) , पुनर्नवा , कालमेघ , किराक्ततिक्त (चिरायता) , चित्रक , कुटकी , भृंगराज , घृत कुमारी , ताम्र भस्म आदि का एकल रूप में अथवा इन औषधियों से निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत प्रयोग करें ।

                                                   उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप यकृतवृद्धि / Hepatomegaly / Fatty Liver NAFLD / Hepatic Steatosis रोग और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।



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Friday, December 31, 2021

##Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी में क्या खाएं और क्या परहेज करें by Dr. Saket Kumar / mob. 08439017594 / #Ayurveda Doctor in Saharanpur , #BHARAT / ##Saket Garg**##साकेत गर्ग**

                                                     देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                                मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं -  Kidney Stone जिसे हम सामान्य भाषा में “ गुर्दे की पथरी ”और आधुनिक विज्ञान में Renal calculus तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ वृक्काश्मरी ” हैं । 

                                          देवियों और सज्जनों , हमारे आधुनिक समाज में जहां नित्त-प्रतिदिन मानसिक और तकनिकी विकास ने एक नया आयाम स्थापित किया हैं , वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण से शारीरिक रोगों को और अधिक कष्टप्रद बनाने में , आधुनिक दूषित जीवन शैली / Modern Sedentary Life Style , फास्ट फूड कल्चर , और दूषित दिनचर्या ने अपनी महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका को अंजाम दिया हैं । इन्हीं उपरोक्त कारणों की वजह से समाज का एक बड़ा वर्ग Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी रोग से रोगग्रस्त हो चुका हैं ।                            

             आइए विचार विमर्श करते हुए जानने का प्रयास करते हैं कि  Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी का निर्माण कैसे और किन कारणों से होता हैं ? इसके क्या लक्षण हैं ? इससे बचने के क्या उपाय होते हैं ? तथा इसके होने पर इसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ।

Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी के सामान्य लक्षण - 

1. Renal Colic - Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी Stone में हमारी कमर के ऊपरी , दाएं - बाएं पसलियों के नीचे मध्यम से तीव्र और असहनीय दर्द होता हैं । 

                       प्रायः यह दर्द , पेट के निचले हिस्से की ओर ,लिंग या मूत्रमार्ग की ओर भी स्थानांतरित हो सकता हैं। 

2. शरीर में भूख की कमी ।

3. मूत्रत्याग/ Urination करते हुए मूत्रमार्ग में जलन की स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती हैं । 

4. दर्द के साथ अथवा दर्द के बिना भी निरंतर उबकाई / Nausea की स्थिति अथवा उल्टी / Vomating होती रहती हैं ।

5. निरंतर अथवा समय-2 पर बुखार जैसी स्थिति / Febrile Body  या बुखार का ही बने रहना ।

6. मूत्रत्याग/ Urination करते हुए मूत्रमार्ग से रक्तस्राव / खून का आना / अथवा Bleeding होती हैं ।

7. गुर्दों में पानी भरने के कारण , संक्रमण / Infection , सूजन , यहां तक की मवाद / Pus Formation भी हो जाती हैं ।

8. थोड़ी - 2 मात्रा में बार -2 मूत्र का आना ।

Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -  

अपथ्य / क्या न खाएं या पीएं / परहेज -

1. चाॅकलेट , काॅफी , चाय , कोल्ड ड्रिंक आदि कैफ़ीन युक्त आहार अथवा तरल पदार्थ नहीं लें ।

2.  साबूत अनाज , कच्चे चावल , चने ,  सोयाबीन , उड़द , पालक , टमाटर , आंवला , बैंगन , बींस , कद्दू , चौलाई , चीकू , नमक आदि का सेवन ना करें ।

3. फास्ट - फूड जैसे - चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , मैदे से बने व्यंजनों का सेवन ना करें ।

4. दूध अथवा दूध से निर्मित दही , मक्खन , घी , पनीर आदि का प्रयोग कम या ना करें ।

5. चिकनाई एवं रिफांइड युक्त आहार / भोजन और मसालेदार भोजन का सेवन ना करें ।

7. काजू , अखरोट , बादाम , पिस्ता , किशमिश आदि Dry Fruits , खजूर , सिंघाड़ा , जामुन , कमलगट्टा आदि फलों का सेवन ना करें ।

8. मांस - मीट , प्रोटीन युक्त भोजन , अथवा Proteineous Suppliment को न लें।                                                

पथ्य / क्या खाएं या पीएं या क्या करें - 

1. प्रात:काल 2 - 4 किलोमीटर तेज गति से मॉर्निंग वॉक पर जाएं या घर पर रहकर निरंतर आधे घंटे के लिए हल्का व्यायाम , योग आदि जरूर करें ।

2. प्रतिदिन 12-15 गिलास पानी का सेवन करें । अपितु नींबू युक्त  जल , सेब का सिरका , खट्टे मौसमी - संतरों और अनार के जूस का सतत सेवन करें ।

3. वृक्क अथवा Kidney Good Health या Kidney Stone break हेतु हितकारी मूत्रल और अश्मरीभेदन आयुर्वेदिक औषधियां जैसे - अमृता (गिलोय) , पुनर्नवा , गोक्षुर , पाषाणभेद , नल , दर्भ , इक्षु , दारूहरिद्रा , तुलसी , कुलथी ,  ककड़ी के बीज , खीरे के बीज , कुश , काश , खस , लघु पंचमूल , सहिजन , श्वेतपर्पटी , यवक्षार , मूलीक्षार आदि का एकल रूप में अथवा इन औषधियों से निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत प्रयोग करें ।                                 

                             उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप Kidney Stone / गुर्दे की पथरी / वृक्काश्मरी के बार-2 बनने और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                      धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।


Note - Article पढ़ने के बाद Comments Section में अपने विचार / Views / Comment जरूर लिखें ।










Tuesday, December 21, 2021

##Gallstones & it's Management by Dr. Saket Kumar/##Mob. 08439017594/###आयुर्वेदाचार्य/###Saket Garg***/###साकेत गर्ग***

                                                    देवियों और सज्जनों को मेरा पुनः “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को अग्रसर करते हुए , सहृदय नमन और आप सभी का पुनः अभिनंदन ।                                                                मित्रों आज का स्वास्थ्य का विषय हैं - Gall Stone जिसे हम सामान्य भाषा में “ पित्त की थैली की पथरी ”और आधुनिक विज्ञान में Cholestasis तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से “ पित्ताशयगत पित्ताश्मरी ” कहते हैं । 

                                          देवियों और सज्जनों , हमारे आधुनिक समाज में जहां नित्त-प्रतिदिन मानसिक और तकनिकी विकास ने एक नया आयाम स्थापित किया हैं , वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण से शारीरिक रोगों को और अधिक कष्टप्रद बनाने में , आधुनिक दूषित जीवन शैली / Modern Sedentary Life Style , फास्ट फूड कल्चर , और दूषित दिनचर्या ने अपनी महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका को अंजाम दिया हैं । इन्हीं उपरोक्त कारणों की वजह से समाज का एक बड़ा वर्ग Gall Stone / पित्त की थैली की पथरी / पित्ताश्मरी रोग से रोगग्रस्त हो चुका हैं ।

                             आइए विचार विमर्श करते हुए जानने का प्रयास करते हैं कि Gall Stone / पित्त की थैली की पथरी का निर्माण कैसे और किन कारणों से होता हैं ? इसके क्या लक्षण हैं ? इससे बचने के क्या उपाय होते हैं ? तथा इसके होने पर इसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ? 

Bile Juice / पित्त निर्माण - 

Bile Juice / पित्त का निर्माण  यकृत कोशिकाओं /  Liver Cells जिन्हें हम Hepatocytes कहते हैं , के द्वारा निरंतर रूप से निर्मित होता रहता हैं । यह एक प्रकार का पाचक रस अथवा Digestive Juice हैं , जोकि यकृत / Liver की निचली सतह पर गुब्बारे के आकार /( Balloon Shaped ), की Gall Bladder / पित्ताशय / पित्त की थैली में संग्रहित / Store होता रहता हैं और समय-2 पर भोजन करने के उपरांत यह पाचक रस / Digestive Bile Juice , पित्ताशय / Gall Bladder से आवश्यकतानुसार निकलकर छोटी आंत में जाकर खाए हुए अन्न अथवा भोजन का पाचन करता हैं ।

Bile Juice / पित्त का रासायनिक संगठन - 

आधुनिक विज्ञान के कथनानुसार यह Bile Salts , Bile Pigments , और Cholesterol / कोलेस्ट्रोल आदि का मिश्रण होता हैं । 

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी /  का निर्माण - 

शरीर में किन्हीं कारणों से अगर यकृत / Liver की उपचय और अपचय ( Metabolism ) में कुछ नकारात्मक परिवर्तन हो जाते हैं , तो Bile Juice / पित्त में Bile Salt की मात्रा कम और Cholesterol / कोलेस्ट्रॉल एवं Bile Pigments की मात्रा बढ़ जाती हैं । जिसके फलस्वरूप Bile Juice / पित्त / (पाचक पित्त) की सान्द्रता / Concentration / Viscosity बढ़ने के कारण यह अत्यधिक गाढ़ा हो जाता हैं तथा वह Gall Bladder / पित्ताशय से पाचन क्रिया के दौरान , समुचित और पूर्ण मात्रा में आंतों की ओर नहीं जा पाता हैं तथा Gall Bladder / पित्ताशय में ही आवश्यकता से अधिक संग्रहित / Store & Saturated होता रहता हैं । अत्यधिक सांद्र / Saturation होने के कारण और समय के साथ-2 कठोर / Solidify रूप लेने लगता हैं और अन्ततः कुछ समय बाद वही , Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्ताशय की पथरी का रूप ले लेता हैं । 

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी के सामान्य लक्षण - 

1. Biliary Colic - Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी , पित्ताशय की आंतरिक कला / Inner Epithelium Mucosa में  सूजन / शोथ / Inflammation और व्रण / Ulcers उत्पन्न कर देता हैं , जिसके कारण हमारे पेट के ऊपरी दाएं भाग की ओर पसलियों के नीचे दर्द होता हैं । प्रायः यह दर्द पेट के मध्य उपरी भाग में , छाती के बीच में पिछली ओर (कमर) के बीच और यहां तक की दाएं कंधे तक भी स्थानांतरित हो जाता हैं ।

                             Gall Stones / पित्ताश्मरी का दर्द प्राय: उल्टी के साथ असहनीय अवस्था तक भी पहुंच जाता हैं तथा तेज और असहनीय दर्द की ऐसी अवस्था में औषधीय चिकित्सा ना करते हुए , आकस्मिक शल्य चिकित्सा / Emergency & Cholestectomy Sergical removal of Gall Bladder or Stone , एकमात्र बेहतर विकल्प होती हैं ।  

2. शरीर में भूख की कमी ।

3. भोजन करने पर , पेट में भारीपन , गैस और अपचन / Indigestion की स्थिति बनी रहती हैं । 

4. भोजन से पूर्व अथवा भोजन करने पर अथवा निरंतर उबकाई / Nausea की स्थिति अथवा उल्टी / Vomating होती रहती हैं ।

5. निरंतर अथवा समय-2 पर बुखार जैसी स्थिति / Febrile Body  या बुखार का ही बने रहना ।

6. शरीर में Cholesterol / कोलेस्ट्रॉल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती हैं , जिसके फलस्वरूप Blood Pressure / ब्लड प्रेशर और Cardiopathy / हृदय रोग होने की भी उपद्रव के रूप में संभावना बन जाती हैं।

Gall Stone / पित्ताश्मरी / पित्त की थैली की पथरी की चिकित्सा एवं चिकित्सा सिद्धांत -  

1. आहार / भोजन में रेशेदार सब्जी और सलाद जैसे खीरा , गाजर , चुकंदर , मूली , अदरक , शलजम , आंवला , लौकी , करेला आदि हरी सब्जियों का सतत सेवन करें ।

2. आलू , मिठाई , चावल , राजमा , उड़द , छोले जैसी दालों का सेवन ना करें ।

3. दिनचर्या में चॉकलेट , कोल्ड ड्रिंक , फास्ट - फूड जैसे - चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , मैदे से बने व्यंजनों का सेवन ना करें ।

4. ठंडे पानी का सेवन पीने के लिए ना करें , अपितु नींबू तथा सेंधा नमक युक्त गर्म जल का ही सेवन करें ।

5. दूध अथवा दूध से निर्मित दही , घी , पनीर आदि का कम प्रयोग करें ।

6. चिकनाई युक्त आहार / भोजन और मसालेदार भोजन का सेवन ना करें ।

7. प्रतिदिन 2-3 गिलास , तिल तेल में हींग - जीरा - अजवाइन - मेथी - धनिया आदि से छोंक  लगा हुआ मट्ठे / बटर्मिल्क का सेवन करें ।

8. रात्रि में सोते समय नींबू युक्त गर्म पानी के गिलास के साथ सत्त ईसबगोल अथवा  त्रिफला का एक से डेढ़ चम्मच निरंतर सेवन करें ।

9. प्रतिदिन ज्वार - बाजरा और गेहूं से निर्मित मिश्रित आटे से बनी रोटी का ही सेवन करें ।

10. प्रातःकाल , रात को 5 -6 भीगी हुई लहसुन की कलियों का छिलका उतारकर , बारीक काटकर दो गिलास पानी के साथ शौचक्रिया से पहले सेवन करें ।

11. प्रात:काल 2 - 4 किलोमीटर तेज गति से मॉर्निंग वॉक पर जाएं या घर पर रहकर निरंतर आधे घंटे के लिए व्यायाम , योग आदि जरूर करें ।

12. Cholesterol / कोलेस्ट्रोल आदि को कम करने वाली कफशामक  और मेदधातुशामक औषधियों जैसे - शुण्ठी , पिप्पली , काली मिर्च , दालचीनी , आंवला , चित्रक , हल्दी , अर्जुन , गुग्गुल आदि एकल औषधियों अथवा इनसे निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत सेवन करें ।

13. यकृत अथवा Liver Good Health हेतु हितकारी आयुर्वेदिक औषधियां जैसे - अमृता (गिलोय) , पुनर्नवा , कालमेघ , किराक्ततिक्त (चिरायता) , चित्रक , कुटकी , भृंगराज , घृत कुमारी , ताम्र भस्म आदि का एकल रूप में अथवा इन औषधियों से निर्मित योगो का आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श उपरांत सतत प्रयोग करें ।

                                           उपरोक्त चिकित्सा बिंदु केवल Silent Gall Stone , Chronic Cholecystitis अथवा Smaller sized Gall Stone / पित्ताश्मरी के अधिक बड़े ना होने की दशा में ही , प्रयोग करने चाहिए । अत्याधिक तेज दर्द / पीड़ा और Acute cholesystitis होने पर और Gall Stone का अत्यधिक बड़ा आकार होने की दशा में आकस्मिक एवं आधुनिक शल्य चिकित्सा / Emergency Cholestectomy Sergical removal of Gall Bladder or Stone ही श्रेष्ठतम सिद्ध  चिकित्सा होती हैं । अतः अनावश्यक रूप से औषधीय अथवा Medicinal Treatment का सहारा ना लें । 

                      उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप Gall Stone / पित्ताश्मरी के बार-2 बनने और इसके उपद्रव से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / काय रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।



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Saturday, November 20, 2021

#White discharge ?/श्वेत प्रदर by Dr. Saket Kumar/mob.08439017594#Saharanpur#BHARAT/#साकेत गर्ग/#Saket Garg

                                                   नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ” की अवधारणा को नया आयाम देने के उद्देश्य से एक नए स्वास्थ्य विषय “ श्वेत प्रदर ” की पुनरावृत्ति क्यों ? , को लेकर उपस्थित होते हुए , आप सभी का अभिनंदन करता हूॅं । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में श्वेत प्रदर को Leaucorhea तथा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से श्वेत प्रदर , एक प्रकार का योनिव्यापद् जन्य उपद्रव एवं मेरे निजी दृष्टिकोण से “ रस धातु का क्षरण ” करने वाला पृथक् रोग है।

DIAL BHARAT .. 08439017594

                                   मित्रों आज का स्वास्थ्य विषय भले ही पूर्ण रूप से नारी शक्ति को समर्पित हो किन्तु परोक्ष रूप से सम्पूर्ण परिवार को प्रभावित करने वाला रोग और स्वास्थ्य विषय हैं। आइए जानने की कोशिश करते हैं - श्वेत प्रदर हैं क्या ? , ये सामान्य कब हैं ? , और कारण सहित इसके क्या लक्षण हैं ? , और कब इसे रोग की श्रेणी में रखना चाहिए ?

                                मित्रों स्त्री में प्रजनन तंत्र संबंधित जननांग अंग योनि से समय-2 पर , स्त्री हार्मोन एस्ट्रोजन / Oestrogen की सक्रियता के कारण , मैथुन उत्सुकता के समय (Sexual excitement) , मैथुन करने के दौरान (During sex) , मासिक धर्म से पूर्व (Before menses) , स्त्री की Ovary से अण्ड् विसर्जन के समय   (At ovulation) , और अन्य भी अनेक विशेष परिस्थितियों में सामान्य , उपद्रवरहित स्राव निकलता रहता हैं जो योनि की स्वस्थ्ता , और अम्लीयता (ph control) को संतुलित करने हेतु नितांत आवश्यक होता हैं ,यह सामान्य प्रक्रिया है जिसमें स्रावित होने वाला स्राव रंगहीन पारदर्शी , गंधहीन दुर्गंध रहित , चिकनाई युक्त होता हैं , तथा  स्राव की मात्रा प्रत्येक स्त्री में विभिन्नता लिए हुए कम या ज्यादा हो सकती हैं। किंतु अज्ञानता और समाजिक कथित धारणा के कारण हम इस सामान्य स्राव को भी श्वेत प्रदर की श्रेणी में रख कर , अपने आप को अस्वस्थ और आत्मग्लानि से ग्रस्त स्वीकार करने लगते हैं और छद्म चिकित्सको (Unqualified or Greedy) के झांसे में आकर , स्वयं या अपनी पुत्री की निरर्थक चिकित्सा कराने हेतु आर्थिक शोषण का शिकार बन जाती हैं। उपरोक्त अवस्था, श्वेत प्रदर रोग बिल्कुल नहीं हैं ।

श्वेत प्रदर के कारण -

1. प्रजनन अंग योनि की अम्लीयता में कमी।

2. प्रजनन अंग योनि को समुचित स्वच्छ न रखना।

3. प्रजनन अंग योनि की आन्तरिक कला में किसी भी प्रकार का संक्रमण (Infection) का हो जाना।

4. एक से अधिक पुरूष साथी से संभोग करना।

5. पुरुष साथी के लिंग में किसी प्रकार का संक्रमण (STD) होना ।

6. स्त्री के शरीर की रोग प्रतिरोधक (Immunity) क्षमता का कम होना।

7. स्त्री का मधुमेह रोग (Diabetes Mellitus) से ग्रस्त होना ।

8. स्त्री में स्त्री हार्मोन की मात्रा में अनियमितता की पुनरावृत्ति का बने रहना ।

9. मिर्च - मसालेदार , तैलीय भोजन , अधिक मीठा , चाय , चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , पिज्जा आदि फ़ास्ट फूड का अधिक सेवन करना आदि ।

10. संतुलित आहार , सलाद ,फल , दूध-दही का कम सेवन करना ।

11. शारीरिक श्रम न करना आदि।

श्वेत प्रदर के लक्षण -

1. योनि स्राव का निरंतर दिन और रात में संपूर्ण समय स्रावित होते रहना।

2. योनि स्राव पारदर्शी न होकर , सफेद , हल्का हरापन या नीलापन लिए हुए हो।

3. योनि स्राव का चिपचिपा युक्त होना।

4. योनि स्राव का तीक्ष्ण / तेज दुर्गंध युक्त बदबूदार होना ।

5. योनि में जलन अथवा खुजली  होने लगती हैं।

6. शरीर में कमजोरी महसूस करना।

7. कमर में दर्द का बने रहना।

8. हल्के-2 बुखार जैसी स्थिति का बने रहना।

9. सामान्य व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता हैं।

10. भोजन में रूचि न होना।

11. मैथुन में इच्छा नहीं होती हैं ।

12. अकेले रहने की इच्छा होती हैं।

                                    श्वेत प्रदर , शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर समान रूप से अपना नकारात्मक असर अथवा प्रभाव डालता हैं , अतः श्वेत प्रदर में , Physical changes के साथ-2 हमारी Psychology भी disturb होती हैं।

श्वेत प्रदर हेतु चिकित्सा सिद्धान्त -

1. उपरोक्त बताए गए सभी कारण अथवा निदानों का संपूर्ण रूप से त्याग करें।

2. शौच करने के बाद अथवा समय-2 पर योनि को उष्ण जल / फिटकरी मिश्रित उष्ण जल से प्रक्षाचलित अथवा निरंतर धुलते रहें ।

3. नाश्ते में अंकुरित चने , दलिया , दूध , रोटी-सब्जी एवं भोजन में संपूर्ण मात्रा में दाल , हरी पत्तेदार सब्जी , प्रचुर मात्रा में चावल , दो से तीन रोटी और सुबह-शाम एक-2 गिलास दूध , घी का निरंतर सेवन करें।

4. प्रतिदिन निरंतर उचित मात्रा में फल अथवा फलों के जूस का सेवन करें ।

5. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले आहार और औषध जैसे- चिरायता , आंवला , गिलोय , मुलेठी , अश्वगंधा , शतावरी , विदारीकन्द आदि आयुर्वेद औषधि का एकल अथवा योग में निरंतर सेवन करें ।

6. प्रदर नाशक कषाय रस प्रधान आयुर्वेद औषध जैसे - पठानी लोध्र , धाय पुष्प , हरड़ , बहेड़ा ,आम की गुठली ,प्रियंगु , लाजवंती ,  रोहीतक मूल की छाल , फिटकरी आदि के चूर्ण , क्वाथ आदि में शहद मिलाकर सेवन करें।

7. योनि पिचू धारण -दिन में दो बार उपरोक्त क्वाथ अथवा फिटकरी मिश्रित जल में साफ अंगुठे के समान रुई को पूर्ण भिगोकर योनि प्रदेश में अंदर धारण कर रखें ।

                                                   उपरोक्त उपायों को इस्तेमाल कर बहुत हद तक आप श्वेत प्रदर से मुक्ति पा सकती हैं , किंतु अगर फिर भी आप इस रोग से ग्रस्त ही रहतीं हैं तो शीघ्र ही अपने Family Physician / स्त्री रोग विशेषज्ञ या किसी कुशल , प्रशिक्षित , अनुभवी  आयुर्वेद चिकित्सक ” से परामर्श लेकर, स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

                                     धन्यवाद ।

Note - उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।



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मठ्ठा पीने से लाभ ... ‘ तक्र ’ a good drink

                                            नमस्कार देवियों और सज्जनों , मैं पुनः आप सभी लोगों के मध्य  “ स्वस्थ भारत...स्वस्थ समाज ”  की अव...